Sunday, 1 June 2014



जबते मोहि नन्दनंदन दृष्टि परो माई ।
तबसे परलोक लोक कछु न सुहाई ।
कहा कहूँ अनूप छबि बरनी नहीं जाई ।।
मोरन की चन्द्रकला सीस मुकुट सोहे ।
केसर रो तिलक भाल तीन लोक मोहे ।।
कुंडल की अलक झलक कपोलन पर छाई ।
मानो मीन सरवर तजि मकर मिलन आई ।।
ललित भृकुटि तिलक भाल चितवन में टोना ।
खंजन अरु मधुर मीन भूले मृग छोना ।।
सुंदर अपि नासिका सुग्रीव तीन रेखा ।
नटवर प्रभु वेश धरे रूप विशेषा ।।
हसन दशन दाड़िम दुति मंद मंद हाँसी ।
दामिन दुति चमकी जे चपला सी ।।
चन्द्र घंटिका अनुपम बरनी नहीं जाई ।
गिरिधर प्रभु चरनकमल मीरा बलि बलि जाई ।।
**** राधे कृष्णा हरे कृष्णा ****

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