Wednesday, 24 December 2014



करारविन्देन पदार्विन्दं, मुखार्विन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव।
जिव्हे पिबस्वा मृतमेव देव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

विक्रेतुकामाखिल गोपकन्या, मुरारि  पादार्पित चित्तवृतिः।
दध्यादिकं मोहावशादवोचद्, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

गृहे-गृहे गोपवधू कदम्बा:, सर्वे मिलित्वा समवाप्ययोगम्।
पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

सुखं शयाना निलये निजेऽपि, नामानि विष्णोः प्रवदन्तिमर्त्याः।
ते निश्चितं तन्मयतमां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

जिह्‍वे दैवं भज सुन्दराणि, नामानि कृष्णस्य मनोहराणि।
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

सुखावसाने इदमेव सारं, दुःखावसाने इदमेव ज्ञेयम्।
देहावसाने इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

जिह्‍वे रसज्ञे मधुरप्रिया त्वं, सत्यं हितं त्वां परमं वदामि।
आवर्णये त्वं मधुराक्षराणि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

त्वामेव याचे मन देहि जिह्‍वे, समागते दण्डधरे कृतान्ते।
वक्तव्यमेवं मधुरम सुभक्तया, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश, गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो।
जिह्‍वे पिबस्वा मृतमेवदेवं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
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श्रीजी कृपा-कटाक्ष सों मिल गए रास-बिहारी !
जग सूनो-सूनो लागिहै श्यामसुन्दर गिरधारी !!
मुरली मधुर कूँ पाइके और श्रवण कूँ काय ! 
श्रीराधे-राधे रस सुधा मनमोहन रहे बर्षाय !!
अंग-अंग पै लाजि हैं कोटि-कोटि शत काम !
श्री राधावल्लभ दर्शन श्रीजी श्याम के नाम !!
यमुना जल की तरंग में श्री राधे-राधे होय !
रूप माधुरी श्याम की दर्शन नित्य ही होय !!
वृन्दावन ऐसो फलो आनंद चहुँ दिशि आय !
श्रीराधे-राधे मधुर ध्वनि गीत श्याम के गाय !!
नित्य रास सत्संग के निर्झर बिपिन-बिहार !
श्रीजी की कृपा मिले वृन्दावन रस साकार !!
शीतल-मंद-सुगंध-समीर श्री प्रियालाल की कुञ्ज !
हरिदासी-हरिवंश की श्री श्यामा-श्याम उमंग !!
व्यासदास निश्चिन्त हैं श्री प्रियालाल के आस !
भाग्य बड़े "राधे " भये करे श्री वृन्दावन वास !!
श्याम रंग मेरे मन भरे श्री श्यामा रंग में चाम !
गौर-नीलमणि संग सों हरित-ललित द्युति नाम !!
सत्संगहि पाई परम दुर्लभ राशि महान ! 
सफल भये जीवन मेरे श्री वृन्दावन की छाँव !!
भेंट भई नन्दलाल सों प्रगटे मन मेरे आय !
श्री राधे-राधे गात हूँ श्री राधे-राधे ध्याय !!



तुमसे तन-मन मिले प्राण प्रिय! सदा सुहागिन रात हो गई होंठ हिले तक नहीं लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई राधा कुंज भवन में जैसे सीता खड़ी हुई उपवन में खड़ी हुई थी सदियों से मैं थाल सजाकर मन-आंगन में जाने कितनी सुबहें आईं, शाम हुई फिर रात हो गई होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई तड़प रही थी मन की मीरा महा मिलन के जल की प्यासी प्रीतम तुम ही मेरे काबा मेरी मथुरा, मेरी काशी छुआ तुम्हारा हाथ, हथेली कल्प वृक्ष का पात हो गई होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई रोम-रोम में होंठ तुम्हारे टांक गए अनबूझ कहानी तू मेरे गोकुल का कान्हा मैं हूं तेरी राधा रानी देह हुई वृंदावन, मन में सपनों की बरसात हो गई होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई सोने जैसे दिवस हो गए लगती हैं चांदी-सी रातें सपने सूरज जैसे चमके चन्दन वन-सी महकी रातें मरना अब आसान, ज़िन्दगी प्यारी-सी सौगात ही गई होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई


- : राधिका :-
न जाना छोड़के कान्हा तू मेरे मन
का वृन्दावन,
तेरे जाने की बातों से मेरे नयनों में है
सावन।
अग़र जाना ही था तो फिर बसे क्यूँ मन के
आँगन में,
बहुत देगा तुम्हें गारी ये जमना तीर
का उपवन।

- : कृष्ण :-
करेंगें हर घड़ी हर पल प्रतिक्षा हम
तेरी राधे,
बहुत सूना है ये मधुवन, निशा पूनम की ये
राधे।
हमारा रास क्या, मधुमास क्या, विश्वास
हो तुम ही,
मुरलिया भूल बैठी है मधुर सरगम
मेरी राधे।


तेरी बांकी नजर का असर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया
प्रेम मंदिर पुजारन का घर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया

सुध नहीं अब कोई , ना कोई साज है
गीत भी अब तू ही तू ही आवाज है
तू ही श्रृंगार तू ही संवर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया

प्रेम धुन बांसुरी जब बजाये कहीं
रास के भाव मन में जगाए कहीं
नृत्य ही नृत्य शाम-ओ -शहर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया

मन में तेरी रटन बस तू ही है भजन
कर्म भी अब तू ही धर्म तेरे वचन
दुनिया दारी से मै बेखबर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया

प्रेम स्वीकार कर भव से अब पार कर
मन में एक तू बसा मुझसे ही प्यार कर
मोह संसार का बेअसर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया

तू अगर है खुदा तो मै तुझसे जुड़ा
राह पर मै तेरी हर कदम पर पड़ा
तेरे हर अक्स का मुख़्तसर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया ....

Thursday, 18 December 2014



मधुराष्टकं की रचना भगवान श्री कृष्ण जी के परम भक्त श्री वल्लभाचार्य जी ने की थी।मधुराष्टकं अत्यन्त सुंदर स्तोत्र है। जिसमें मधुरापति श्री कृष्ण जी के परम सुंदर रूप और भावों का वर्णन है।श्री कृष्ण साक्षात् माधुर्य और मधुरापति हैं।

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ஜ۩۞۩ஜअधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम्ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜहृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜउनके अधर मधुर है।मुख मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜनेत्र मधुर है।हास्य मधुर है।ஜ۩۞۩ஜஜ۩۞۩ஜह्रदय मधुर है।और गति भी अति मधुर है ।।१।।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜवचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜचलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜवस्त्र मधुर है।अंगभगी मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜचाल मधुर है।और भ्रमण भी अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है ।।२।।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜवेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜनृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜउनका वेणु मधुर है।चरणरज मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜकरकमल मधुर है।चरण मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜन्रत्य मधुर है।और सख्य भी अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।।३।।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜगीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜरूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜउनका गान मधुर है।पान मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜभोजन मधुर है।शयन मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜऔर तिलक भी अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜकरणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम्ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜवमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜउनका कार्य तैरना मधुर है।हरण मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜरमण मधुर है।उद्धार मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜऔर शान्ति भी अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜगुञ्जा मधुरा बाला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुराஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜसलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜउनकी गुंजा मधुर है।माला मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜयमुना मधुर है।तरंग मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜउनका जल मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜऔर उनका कमल अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।।६ ।।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜगोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜदृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜगोपिया मधुर है लीला मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
उनका संयोग मधुर है।शिष्टाचार भी मधुर है।
श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।। ७।।

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ஜ۩۞۩ஜगोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुराஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜदलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜगोप मधुर है।गौऐ मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜलकुटी मधुर है।रचना मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜदलन मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜऔर उनका फल भी अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है ஜ۩۞۩ஜ


सारे बंधन तोड़ के कान्हा,
तुमसे लगाई आस.
कहना मान लो मनमोहन,
ज़रा सुन लो अरदास।
जग कहे है मनमोहन तुम्हे,
तुम हो मेरे नंदलाल।
अंगुली पर गोवर्धन उठा,
कहलाये गोपाल।
इंद्र की मनमानी का बहुत,
हो गया यहां उपहास,,,,,,,
कहना मान ................
तुम्हारी मन मोहनी मूरत,
तुम्हारे शोभते से अंग.
गीत गायें करे गोपियाँ मनुहार,
संग करे गोपाल सत्संग।
न दूर तुम जाओ मोहन,
रहो तुम हमारे पास,,,,,,
कहना मान ………
हाथों में तुम्हारे वेणु सजे ,
गले में वैजयंती माल.
तुम्हारे पाँव लगे रेणु,
कस्तूरी तिलक है भाल.
सदा मैं नाम लूँ तुम्हारा,
हो पास ये आभास,,,,,,,,
कहना मान ……
तुम्हारे प्यार की इक बूँद,
खिलाये मन हरियल दूब.
खिल गयीं ओस में कलियाँ,
भागी जीवन की कड़वी ऊब.
जब तुम पास हो मेरे,
तो क्यों हो मन उदास ,,,,,,,,,,,,


श्याम वरण काया, निर्मल है तन- मन,
अद्भुत तेरा शैशव, नटखट है बालपन...
..
देवकी के पुत्र किशन, जन्म कालकोठरी में 
यशोदा का लाडला , करे लाड़ गोकुल में ....

पूतना का वध हो या कालिया का मर्दन,
माखन चुराए या उठाये गोवर्धन .....

मां के दुलार में सराबोर हुआ बचपन,
राजकुंवर ग्वालो से जताए अपनापन ...
..
पुत्र की लीला से ,पुलकित है अंग अंग ,
हर मैया पूछे ! माखनचोर तेरे कितने रंग

जिन गोपियों के बीच कान्हा रास रचाए,
वही गोपियाँ ,उद्धव को भक्ति पाठ पढाये.....
.
सोलह हजार रानियां मंडराए चहुँओर,
राधा के पावन प्रेम का पुजारी ! चितचोर.....

इतनी नारियो के बीच सभी भोगी कहलायें
रंगरसिया श्याम, फिर भी योगी कहलाये .....

प्रेम भी उद्यत है ,जब हो भक्ति के संग,
चकित है मीरा !मनमोहना तेरे कितने रंग 

Wednesday, 17 December 2014



मेरे माधव !
यूँ मुझमे समाये हो तुम 
की होश नहीं ,
मैं तुम हूँ की तुम मैं 
रागिनी हूँ मैं पिया तुम्हारी 
धर लो न अधरों पे मुझे रागिनी हूँ 
रंग में रंग के देख तो लो मन बसिया
तुम जेसा सच्चा कोई नहीं
तुम जिसा निष्पाप कोई नहीं
दुनिया कहे तुम्हे कहे छलिया
कौन जाने इसके पीछे
कितनी अबलाओं को तुमने अपना नाम दिया ....
सम्हाला दुनिया को जीवन का सांचा मार्ग दिया
जो किया कभी छिपा के नहीं
दुनिया के सामने किया
इसलिए तो तुम कहलाओ पगले छलियाँ
तुम छलिया नहीं सांचे मानव हो
जिसने सबको अपना नाम दिया
जिसने जिस रूप में तुम्हे पुकारा
तुमने उसे थाम लिया ..
मुझे भी यूँ ही थामे रहियो मेरे सर्वेश्वर
मेरे राम .!
तुम्हारी चरण दासी 


मोहे गोकुल ऐसो भायो सखी ,मैं तो भूल गई बरसानो री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री 

कहें गोपियाँ माखनचोरी करे वो नंदकिशोर री 
धर के हथेली दिल दे आई ,कैसे कहूँ चित्तचोर री
चलो ना कोई जोर री , मैं किसने देऊ उल्हानो री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री

ऐसी भई मैं श्याम की श्यामा , मैं तो हुई बडभागन री
जागत जागत खोवन लगी मैं ,सोवत सोवत जागन री
अब श्याम रहे मेरी आंखन मैं, जग दिखे बेगानों री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री

सबई कहें ठगन को ठग है ,जो है नन्द को लालो
मैं का मानू बात सखी वो मेरे है देखो- भालो
देखन मैं बेशक है कालो , वो सबने करे दीवानों री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री

Tuesday, 16 December 2014



 भक्तवत्सल हरि बिरुद तिहारो
भज गोविंद तु, हरि सुखदाई,
नाथ चरण तुम शरण मे आई;
जूठे जगत से मोहे बचाई। भज गोविंद..
इस संसार के जूठे संबंधी,
स्वाराथ में सब दुनिया अंधी;
मोहन तुम मोहे उर लगाई। भज गोविंद..
प्रभु के साथ मोरी प्रीत अभंगी,
होवत हरि में तोरी सत्संगी। 
हरि स्मरण में प्रीत लगाई। भज गोविंद..
अशरण के तुम शरण कहाई,
रखो लाज प्रभु हमरी कन्हाई;
कर जोड़ी करू वंदना सदाई। भज गोविंद..


अब तो हरि नाम लौ लागी
सब जग को यह माखनचोर, नाम धर्यो बैरागी।
कहं छोडी वह मोहन मुरली, कहं छोडि सब गोपी।
मूंड मुंडाई डोरी कहं बांधी, माथे मोहन टोपी।
मातु जसुमति माखन कारन, बांध्यो जाको पांव।
स्याम किशोर भये नव गोरा, चैतन्य तांको नांव।
पीताम्बर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
दास भक्त की दासी मीरा, रसना कृष्ण रटे॥