Wednesday, 17 December 2014



मेरे माधव !
यूँ मुझमे समाये हो तुम 
की होश नहीं ,
मैं तुम हूँ की तुम मैं 
रागिनी हूँ मैं पिया तुम्हारी 
धर लो न अधरों पे मुझे रागिनी हूँ 
रंग में रंग के देख तो लो मन बसिया
तुम जेसा सच्चा कोई नहीं
तुम जिसा निष्पाप कोई नहीं
दुनिया कहे तुम्हे कहे छलिया
कौन जाने इसके पीछे
कितनी अबलाओं को तुमने अपना नाम दिया ....
सम्हाला दुनिया को जीवन का सांचा मार्ग दिया
जो किया कभी छिपा के नहीं
दुनिया के सामने किया
इसलिए तो तुम कहलाओ पगले छलियाँ
तुम छलिया नहीं सांचे मानव हो
जिसने सबको अपना नाम दिया
जिसने जिस रूप में तुम्हे पुकारा
तुमने उसे थाम लिया ..
मुझे भी यूँ ही थामे रहियो मेरे सर्वेश्वर
मेरे राम .!
तुम्हारी चरण दासी 

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