Thursday, 26 December 2013




निगाहों में यूँ बात होने लगी
प्यार की ही बरसात होने लगी
मेरे होंठो पे बसा श्याम ही श्याम हैं
कैसे कह दूँ? उन्ही से हमे काम हैं
अब उन्ही से मुलाकात होने लगी
छवि मोहन की नैनो में हैं बस गयी
आँखों में राधारानी हैं सज गयी
हर पल उनसे ही बात होने लगी
'हरिदासी' हैं उल्फत तो वोह पास हैं
प्यार से मिलता मोहन यही राज हैं
दीखता कण कण में, अब बात होने लगी





                                                            श्री राधे राधे 

  • सचिदानंद दिव्य सुधा रस सिन्धु ब्रजेन्द्र नंदन राधावल्लभ श्यामसुंदर श्री कृष्ण चन्द्र का नित्य निवास है प्रेम धाम ब्रज में और उनका चलना फिरना भी है ब्रज के मार्ग में ही. यह मार्ग चित्त वृति निरोध सिद्ध महा ज्ञानी योगीन्द्र मुनीन्द्रों के लिए भी अत्यंत दुर्गम है. ब्रज का मार्ग तो उन्हीं के लिए प्रकट होता है जिनकी चित्त वृति प्रेम धन रस सुधा सागर आनंदकंद श्री कृष्ण चन्द्र के चर्णारविंदों की ओर नित्य निर्बाध प्रवाहित रहती है जहाँ न निरा निरोध है और न ही उन्मेष ही बल्कि दोनों की चरम सीमा का अपूर्व मिलन है.
  • इस पथ पर अबाध विहरण करती हुई वृष भानु नंदनी रासेश्वरी श्री श्री राधा रानी का दिव्य वसनांचल विश्व की विशिष्ट चिन्मय सत्ता को कृत कृत्य करता हुआ नित्य खेलता रहता है किसी समय उस वसनांचल के द्वारा स्पर्षित धन्यातिधन्य पवन लहरियों का अपने श्री अंग से स्पर्श पाकर योगीन्द्र मुनीन्द्र दुर्लभ गति श्री मधुसुदन पर्यंत अपने को कृतार्थ मानते हैं उन श्री राधारानी के प्रति हमारे मन प्राण आत्मा हमारे अंग अंग से नमस्कार !

  • जो सबके ह्रदय अंतराल में नित्य निरंतर साक्षी और नियंतारूप से विराजमान रहने पर भी सबसे पृथक रहते हैं जो समस्त बन्धनों को तोड़कर सर्वथा उच्च श्रृंखला को प्राप्त हैं , जिनके स्वरुप का सम्यक ज्ञान ब्रह्मा शंकर शुक नारद भीष्म आदि को भी नहीं है अतएव वे हार मानकर मौन हो जाते हैं उन सर्वनि यमातीत सर्वबंधनविमुक्त नित्य स्ववश परात्पर परम पुरुषोतम को भी जो श्री राधिका चरण रेणु इसी क्षण वश में करने की अनंत शक्ति रखता है उस अनंत शक्ति श्री राधिका चरण रेणुका हम अपने अन्तस्तल से बार बार भक्ति पूर्वक स्मरण करते हैं !

  • विश्व्प्रकृति के प्रत्येक स्पंदन में बिन्दुरूप से जो अनुराग वात्सल्य कृपा लावण्य रूप सौन्दर्य और माधुरी वर्तमान है - रासेश्वरी नित्य निकुंजेश्वरी श्रीवृष भानुनंदनी उन्ही सातों रासो की अनंत अगाध अधिष्टात्री हैं. इस प्रकार नित्य आनंद रसमय सप्त स्मुद्र्वती श्री राधिका श्याम सुन्दर आनंदकंद के नित्य दिव्य रमणानन्द में अनादी काल से उन्मादिनी हैं - नित्य कुल त्यागिनी हैं. इन्हीं के सहज सरल स्वच्छ भाव के शुद्ध रस से इन्हीं के भावानुराग रूप दधिमंड से इन्ही की वात्सल्यमयी दुग्ध धारा से इन्हीं की परम स्निग्ध घृतवत अपार कृपा से इन्हीं की लावण्य मदिरा से इन्हीं के छबिरूप सुन्दर मधुर इक्षुरस से और इन्हीं के केलि विलास विन्यास रूप क्षार तत्व से समस्त अनंत विश्व ब्रह्माण्ड नित्य अनुरक्षित अनुप्राणित और ओतप्रोत है

  • ऐसी अनंत विचित्र सुधा रसमयी प्राणमयी विश्व रहस्य की चरम तथा सार्थक मीमांसामूर्ति श्री वृष भानु नंदनी का दिव्य स्फुरण जिसके जीवन में नहीं हो पाया उसका सभी कुछ व्यर्थ - अनर्थ है. देवी राधिके अपने ऐसे दिव्य स्फुरण से मेरे ह्रदय को कृतार्थ कर दो
  • कितना नसीब होता वोह सामने ही होता
    वोह साँवरा मुरारी,मेरे करीब होता
    मिट्टी में आँसू जो गिरे सब देखते रहे
    अछा ही होता-पोंछने वाला भी साथ होता
    उनके ही राज में हम,महफिल में बेठे हैं
    कितना ही अछा होता,जो देख लिया होता
    सुना हैं करुना से भरा दिल हैं हजूर का
    क्या जाता आपका,जो दिल से लगाया होता
    आपकी चुप से समझा,के जमाना भी बुरा हैं
    अछा ही होता जो हमे,दिला में छिपाया होता
    बोलो जरा तो मोहन,"राधे" की' अर्ज पे
    मीठा सा कुछ बोल के,कुछ हँस दिया होता



बलिहारी जाऊ मेरी छोड़ गगरी
श्याम सांवरे मेरी छोड़ गगरी
इस गगरी में जल भर लाऊ
ठाकुर के मैं चरण धुआऊं

खाने को दू मैं प्यारी रबडी
इस गगरी में ढूध भर लाऊ
प्रेम से श्याम को भोग लगाऊ
मोहे प्यारी लागे तेरी गोकुल नगरी
इस गगरी में माखन भरुंगी
श्याम के आगे जाके धरुँगी
वृन्दावन धाम हैं प्यारी नगरी
'राधिका दासी" बृजराज कन्हैया
नाचत निधिवन थैया थैया
चरणों में रहे तेरी प्रेम पगली










कृपा करो मो पर श्री राधा।
अब तो आई तेरे द्वार।
श्री राधे बरसाने वारि।
कृष्ण प्रिय अति भोरी भारी।
तुम सब मन की जानान्हारी।
रसिक जीवनी तुम हो श्यामा।
ना डूबो मझदार।
कृपा करो मो पर श्री राधा।
सखियन प्यारी कुंज बिहारिनि।
श्याम भवति सब सुख कारिन।
ब्रज की ठकुरानी हो मेरी प्राणाधार।
कृपा करो मो पर श्री राधा।
विपिन सम्पदा सप्त किशोरी।
करे सदा नित नित की चोरी।
सब गुनखानी तदपि अति भोरी।
सदा अराधें शुक मुनि नारद ।
ओ मेरी "राधे अलबेली प्रेम सरकार"
कृपा करो मो पर श्री राधा।
टहल महल तेरे मन भाई।
"श्री गोपाल" की प्राण जीवनी।
पलकन डगर बुहार।
कृपा करो मो पर श्री राधा।


नन्द का दुलारा,आँखों का तारा
डूबते को जैसे मिलता किनारा!!!
हम दीन हैं,दीनबन्धु तुम्ही हो,
गुनाहगार हम, करुणासिन्धु तुम्ही हो,
तुम बिन कहा जाए,निर्धन बेचारा
तुम बंसीधर हम बंसी तुम्हारी
तुम्हे याद करती हैं राधा तुम्हारी
दर्शन दिया तूने घनश्याम प्यारा प्यारा
"राधिका" गाती हैं गुणगान तेरा
सभी को सुनाती हैं यशगान तेरा
जो भी हैं मेरा,सभी हैं तुम्हारा



मन को मेरे मोह गया तू साँवली सूरत सांवरिया रे 
कानो में रस मिसरी घोले कान्हा तेरी बांसुरिया रे
और न अब कुछ देखूँ मैं तो यह जग लागे बेगाना सा चारो ओर दिखे बस तू ही कर गया मुझको बावरिया रे
प्रेम में तेरे मैं मनमोहन भटकूँ ऐसे सुध बुध खोकर तेरे एक दरस को जैसे व्याकुल ब्रज की छोहरिया रे
डूबा तेरे चाह में मोहन मैं कुछ ऐसे हे यदुनंदन भूल के जैसे तन मन अपना डूबे जल में गागरिया रे
होऊं मगन मैं हे मुरलीधर देख के तेरी लीलाओं को और न अब कुछ दिल ये चाहे नाचे बनकर पामरिया रे
तेरा दर्शन नित दिन होवे तेरा ही श्रृंगार करूँ बस बैठ निहारूं तुझको लाला झलता जाऊं चांवरिया रे
मंगल तेरा निशि दिन गाऊँ तेरा ही गुणगान करूँ मैं "कान्हा" नाम रटूं बस तेरा शाम सबेरे दुपहरिया रे
देखूं मैं जिस और सखी री सामने मेरे सांवरिया


कृष्ण की बांकी चितवन न्यारी ,राधे हार गयी मन को
कृष्ण की बांकी चितवन न्यारी , राधे हार गयी मन को, स्वर्ण रंग अब श्याम भयो है, राधे भूल गयी तन को , नाचत झूमत ,गावत ,निकसत भई बावरी मानत ना, सबहिन को अब श्याम बतावत, राधे एक सुहावत ना. हे कान्हा अब तोरी बांसुरी , जबसे सुनी मन भ्रमित भयो, तृष्णा भरी है मन में मेरे, एकौ छन मन विछरत ना, देत दिलासा विहरत इत-उत, नैन थकत अब सोवत ना, एकै चितवन धन्य भयो मन, मन यो पहेली बूझत ना. कृपा दृष्टि औ मन है साछी , प्रेम सफल भयो जीवन को, कृष्ण की बंसी रहेयो पुकारत हरदम नाम यो राधे को, आवत जात सबैं में बस्यो है श्याम ही श्याम निहारत है, नाद नाद अब शंख चक्र धरी , राधे कृष्ण विराजत है,,,


तेरे संग ने मुझमें, जीने कि अलख जगाई...... इन आनंदाश्रुओं को , मैं न कभी रोक पाई...... सोचती हूँ जाने दो धुल, ह्रदय का अंतनिर्हित मेल..... होगा निर्मल मन का धरातल, और बीतेगा तेरी कृपा से हर पल .......
मेरे,मन के गागर में, तुम सागर बन,उतर जाओ और रीते घट में,बन सीप, ठहर जाओ ........
हर -पल आओ,मेरे अशांत मन के किनारे को , बन के लहर,निर्मल कर जाओ ..........
मेरा मन बालू-कण की तरह बिखरा पड़ा है , तुम बन के नीर, मिल कर, मुझे ठहरा जाओ.......
कान्हा मैं आई शरण तिहारी,ऐसी कर दो कृपा जरा सी ......
न भटकूँ पल -पल छिन मैं ,ऐसी राह बता दो जरा सी ..... ह्रदय में हो मेरे शांति का बसेरा ,ऐसा कर दो मन पावन सा ..... नित ध्यान करूँ मै तुम्हरा ,ऐसा कर दो सवेरा जरा सा ..... आंसा कर दो धाम का रास्ता ,ऐसा कर दो इशारा जरा सा ....

Tuesday, 10 December 2013


कान्हा काहे को तू मुस्काए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे 

रानी हजारों तेरी रुक्मण पटरानी 
तेरे सिवा ना किसी की राधारानी
कहे मोहन कोई ढूंड के लाए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे

तेरे महल कान्हा नित ही दिवाली
राधा की तुम बिन पूनम भी काली
रो रो नैनों की जोत गंवाए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे

लाखों को पार कान्हा तूने उतारा
बस जीते जी तूने राधा को मारा
फिर क्यों पालनहार कहाए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे


ओ मेरे कान्हा !
अब समय आ गया है
तुम्हारे वापस आ जाने का
और मुझे पता है
तुम आ भी जाओ, शायद
पर क्या तुम
इस सांझ की बेला में
वो महक ला सकोगे
जो तुम्हारे जाने से पहले थी

क्या तुम वो बीते पल ला सकोगे
जो मैंने बगैर तुम्हारे तनहा sगुजारे
मेरे उन आंसुओ का हिसाब दे सकोगे
जो दिन रत अनवरत बहते ही रहे

तुम किस किस बात का हिसाब दोगे
और मैं तुमसे हिसाब मांगू ही क्यूँ
क्या अधिकार रहा मेरा तुम पर
तुम जाते वक्त सब, हा सब,
साथ ही तो ले गए अपने
और जानते हो कान्हा
एक बार कोई अपना, पराया हो जाए, तो,
फिर वो अपना नहीं रहता
और ये बात तुमसे अच्छा कौन समझ सकता है

जय श्री कृष्णा _/\_ ....



दिल पर ऐसे भी दर्द को उतरते देखा कान्हा,
हम ने चुपचाप तुम्हें खुद से बिछड़ते देखा,
तुझको सोचा तो हर सोच में खुशबू उतरी,
श्याम लिखा तो हर लफ्ज़ महकते देखा,
याद आ जाये तो काबू नही रहता दिल पर,
श्याम इस दुनिया ने भी हमको तड़पते देखा,
तेरी सूरत को बस आँख ही नही तरसी है,
रास्तों को भी तेरी याद में रोते देखा,
हम मोहब्बत के लिए आज भी दीवाने हैं,
ये अलग बात है की तुमने मुड कर नही देखा।

जय जय श्री राधे .........
 




मुरली धन्य भाग्य तुम्हारे हुए 
मोहन ने लगाया अधरों से 
अधरामृत पिलाया अधरों से 
नाजुक कर कमलो से उठा कर के 
तुमको लगाया अधरों से 
मुरली धन्य भाग्य तुम्हारे हुए 
मोहन ने लगाया अधरों से 
कोमल कर से वो उठाते हैं 
तुम्हे अपने करीब हर समय बिठाते हैं 
कभी अपने पास सुलाते हैं 
कभी होंठो का रस तुम्हे पिलाते हैं 
कभी बांध के अपनी कमरिया में 
रसिया अपने साथ तुम्हे ले जाते हैं 
मुरली धन्य भाग तुम्हारे हुए 
मोहन ने लगाया अधरों से



राधा रानी प्यारी वृषभानु की दुलारी हैं 
लगे बड़ी ही प्यारी सरकार हमारी हैं 
ठाकुर की ठाकुरायण मोहन मोहिनी प्यारी हैं 
कृष्णा से मिलावन वाली राधा जी सरकार हमारी हैं 
राधा में कृष्णा समाये कृष्णा में राधा प्यारी हैं 
भोली महारानी रसराज की प्रिया प्यारी हैं 
यही राधा प्यारी रसराज से मिलावन वाली हैं 
हे राधा प्यारी रसराज से मिला दो 
रसराज के संग अपने प्यारे दरस करा दो 
उस मुरली मनोहर चितचोर से 
दो बातें हमारी भी करवा दो 
हमे भी राधा प्यारी 
अपने चरणों की दासी बना लो 
हमे रसराज संग अपने दरस करा दो


क्या कहू मैं मोहन तुमको 
कब से नाता मेरा तुम्हारा 
कब से जानू मैं तुझको 
कब से बना हैं रिश्ता हमारा 
जब से यह दिल बना 
इस दिल में तू बसा 
जब जब चलती हैं सांसें 
नाम लेती क्यों तुम्हारा?
क्या कहू मैं मोहन 
कब से हैं नाता हमारा 
जब जब छवि तेरी निहारी 
नयन क्यों अटक गए उसपे बनवारी 
क्या जानू मैं मोहन 
कैसे बना यह नाता हमारा

कान्हा की छवि अति प्यारी है,
श्याम रंग की शोभा न्यारी है।
उस रूप सुधारस से मन का,
प्याला भर देंगे कभी न कभी।
राधा के मनमोहन घनश्याम,
प्रभु कृपा करेंगे कभी न कभी॥

जो दीनों के परम धाम हैं,
जो केवट और सबरी के धाम है।
ऎसा रूप बनाकर उस घर में,
जा ठहरेंगे हम कभी न कभी।
मीरा के गिरधर गोपाल,
प्रभु कृपा करेंगे कभी न कभी॥

करूणानिधि जिनका नाम है,
जो भवसागर से करते पार हैं।
उनकी करुणा कृपा पाकर,
पार पहुँचेंगे हम कभी न कभी।
गोपीयों के माधव कन्हैया,
प्रभु कृपा करेंगे कभी न कभी॥

द्वार पर उसके खड़े हो जायें,
भक्ति में उसकी दृड़ हो जायें।
हम बिन्दु भी उस सिन्धु में,
मिल जायेंगे कभी न कभी।
करुणा के सागर दीनानाथ,
प्रभु कृपा करेंगे कभी न कभी॥
***राधे कृष्णा हरे कृष्णा ***

जब जब कृष्ण न बंसी बजाई
तब तब राधा मन हर्षाई
सखियों संग जमुना तट पहुची
पर कही दिखे न कृष्ण कन्हाई
"नटखट नंदगोपाल छुपे है
कही भी नहीं वो हमको दिखे है "
राधा मंद मंद मुस्काई
जान रही थे खेल रहे है
उसको यु ही छेड़ रहे है
तभी ग्वालो की टोली आयी
सखिया दौड़ी आस लगाई
"नहीं कही गोपाल नहीं है
क्यों है निष्ठुर बने कन्हाई ??"
राधा का मन व्याकुल ऐसा
बिन चाँद चकोर के जैसा
"कान्हा कान्हा दरस दिखाओ
मुरली की कोई तान सुनाओ"
"जग को छोड़ा तुम्हारी खातिर
जन्मो जन्मो युगों युगों
रूप धरा तेरी कहलाई "
"घर भी त्यागा सुख भी त्यागा
मीरा बन पिया विष का प्याला
फिर भी क्यों तुम परख रहे हो ?
अब तो कान्हा दरस दे-रहो
जाओ अब मैं भी न बोलू
पलकों के पट मैं न खोलू
रूठ गयी तो फिर न मिलूंगी
बंसी की धुन मैं न सुनूंगी"
कान्हा का अब मन विचलित है
"कैसे रूठी राधा को मनाऊ ??
रूठो न राधा तुम ऐसे
छेड़ रहा था मैं तो वैसे
तुम सखी मेरी अति प्रिया हो
बंसी अधर ( होठ) तुम लगी हिया (ह्रदय ) हो
अब जो तुम ऐसे रूठोगी
बंसी भी मुझसे रूठेगी
तुम कहो सौतन चाहे बैरन
वो गाए बस तेरे कारन
जो तुम रूठ गयी हो हमसे
सुर उसके भी भूल गए है
जाओ त्याग दिया अब उसको
तुम बिन वो भी रास न आये
नंदनवन में अब न सुनोगी
मेरी बंसी की धुन कोई "
यह सुन राधा ने पलकें खोली
"रूठ कभी न मै सकती हूँ
अब आप सताना छोड़ो हमको
बंसी की धुन कुछ ऐसी बजाओ
चारो दिशाए खिल खिल जाये
मेघ पड़े हरियाली छाये
मन तरंग से भर भर जाये
धरती पर खुशिया घिर आये "
"ये धुन बस तेरे ही लिए है
राधा के बिन कृष्ण न भाये
ऐसी लीला रची गयी है
राधा पहले फिर कृष्ण आये
राधा कृष्ण
राधे कृष्ण
बस ऐसे ही हर कोई गाये "
!!!!! राधे कृष्णा हरे कृष्णा !!!!!
 
हे कुँवर कृष्णा कछु कृपा कीजे
प्रेम धन हमको भी दे दीजे
कछु कृपा कीजे
टेडी चितवन से इक बार
हमको भी देख लीजे
हाय श्याम घायल हमको ही कीजे
कछु कृपा कीजे
थारी दीवानी,फिरू मस्तानी
ढूँढू तोहे पाऊ तोहे
बनके तेरी दीवानी

हे कुँवर कृष्ण कन्हाई
मैं तो लुट गयी तुझ पे
यूँ ही बैठी बिठाई
यह हाल हैं मेरा तब
के जब उन्होने पर्दा अभी
जरा भी सरकाया ही नही
गर गिर जाए वो पर्दा तो....
ऐ श्याम सुन्दर अब तो
कछु कृपा कीजे
प्रेम धन हमको दे दीजे
आपकी दरस प्यास और तेज कर दीजे 
***राधे कृष्णा हरे कृष्णा ***

Monday, 9 December 2013


राधा रास बिहारी
मोरे मन में आन समाये ।

निर्गुणियों के साँवरिया ने
खोये भाग जगाये ।

मैं नाहिं जानूँ आरती पूजा
केवल नाम पुकारूं ।

साँवरिया बिन हिरदय दूजो
और न कोई धारूँ ।

चुपके से मन्दिर में जाके
जैसे दीप जलाये ॥

राधा रास बिहारी
मोरे मन में आन समाये ।

दुःखों में था डूबा जीवन
सारे सहारे टूटे ।

मोह माया ने डाले बन्धन
अन्दर बाहर छूटे ॥

कैसी मुश्किल में हरि मेरे
मुझको बचाने आये ।

राधा रास बिहारी मोरे
मन में आन समाये ॥

दुनिया से क्या लेना मुझको
मेरे श्याम मुरारी ॥

मेरा मुझमें कुछ भी नाहिं
सर्वस्व है गिरिधारी ।

शरन लगा के हरि ने मेरे
सारे दुःख मिटाये ॥

राधा रास बिहारी मोरे
मन में आन समाये ॥
 ***राधे कृष्णा हरे कृष्णा ***



बहुत हो चुकी आँख मिचौली  , दूरी आज मिटाओ श्याम

मुझसे आकर मिलो यहाँ या, मुझको पास बुलाओ श्याम
मेरे श्याम, मेरे श्याम,मेरे श्याम,मेरे श्याम,मेरे श्याम

दूर -दूर रहते रहते तो दूरी बढती जाती है
तुम तो आते नहीं तुम्हारी,यादें बहुत सताती है
दिव्य नेत्र दे दो आँखों से पर्दा ज़रा हटाओ श्याम
मेरे श्याम.........................................................

दूर बज रही वंशी की धुन मुझको पास बुलाती है
कभी सुनाई देती मुझको और कभी खो जाती है
आओ मेरे निकट बैठ कर वंशी आज बजाओ श्याम
मेरे श्याम......................................................

भव सागर में भटक-२ कर देखा सब कुछ झूठा है
मोहन तेरी शरण में सुख है, सुख का सपना टूटा है
कृपा करो मुझपर भी अब तो अपनी शरण लगाओ श्याम
मेरे श्याम.....................................................

मेरी तो अभिलाषा मोहन अब तुम में मिल जाना है
थका -थका नदिया का जल हूँ, सागर आज समाना है
सागर में मिलने दो मुझको , "मैं" को आज मिटाओ श्याम

मेरे श्याम.....