Tuesday, 27 May 2014



हे गोविन्द मिलती मैं तुझसे पर तेरा पता मालूम नहीं 
कुछ कहती अपनी और सुनती पर तेरा पता मालूम नहीं 

बैचैन है रोते रहते है आँखों में फिर भी अश्क नहीं 
है शिकवे और गिले कितने होठो पर फिर भी लफ्ज़ नहीं 
तेरे सामने बैठके मैं रोती पर तेरा पता मालूम नहीं
हे गोविन्द ....

सब सगे संबंधी है यूँ तो पर इनमे कोई रस ही नहीं
कहने को कण कण में तुम हो पर मिलती तेरी खबर भी नहीं
हसरत तो तेरे दीदार की है पर तेरा पता मालूम नहीं
हे गोविन्द .....

कई जतन हरि कर देख लिए आशा की कली नहीं खिलती
अँधियारा ही अँधियारा है दिल में कोई जोत नहीं जलती
सब छोड़ शरण त्रि आ जाती पर तेरा पता मालूम नहीं
हे गोविन्द .......




जग के सारे बंधन छूटें
बस तुमसे ही काम रहे
अंत समय आए तो कान्हा
मुख पे तेरा नाम रहे
राधे राधे राधे राधे .....

छुपा रहूं जग के आगे
भींगू कृपा बरसात में
देखूं तुमको कण कण में
बोलूं तुझको हर बात में
भेजोगे जो फिर धरती पे, गोकुल मेरा गांव रहे
अंत समय आए तो कान्हा, मुख पे तेरा नाम रहे
राधे राधे राधे राधे .....

मेरी सुबह शुरू तेरे नाम से
और शाम भी तेरे नाम पे
नाचे मन मेरा मयूर
मोहन मुरली की तान पे
सपनों में मुझे दर्शन देना, नख गोबर्धन धाम रहे
अंत समय आए तो कान्हा, मुख पे तेरा नाम रहे
राधे राधे राधे राधे .....

मैं झुका के सर को चरणों में
अंसुवन से पांव पखारूँगा
मन के मंदिर में बिठा तुम्हें
जीवन भर नित्य निहारूँगा
दिन बीते मेरा वृन्दावन में, बरसाने की शाम रहे
अंत समय आए तो कान्हा, मुख पे तेरा नाम रहे
राधे राधे राधे राधे .....

आना होगा तुमको एक दिन
पागल मन की कलियों में
मेरा रोम रोम है नाच रहा
कान्हा गोकुल की गलियों में
जब भी मोहन दर्शन देना, राधा रुक्मण साथ रहे
अंत समय आए तो कान्हा, मुख पे तेरा नाम रहे
राधे राधे राधे राधे .....

है आनन्द कथा में जब
द्वापर जाने कैसा होगा
तेरे नाम में रस इतना है भरा
तू स्वयं मधुर कितना होगा
स्वाद चखा दे निज भक्ति का, सफल मेरी अरदास रहे
अंत समय आए तो कान्हा, मुख पे तेरा नाम रहे


ओ मेरे साँवरिया हर पल तू रहे
मेरे सामने देखू तुझे जी भर के
तुझसे ही गिले शिकवे साँवरिया
तुझी से ही हैं प्यार मेरे साँवरिया
तू ही मेरी आत्मा,तू ही दिल और जान
तुझ से ही हैं कायनात सारी
तुझ से ही हैं दिल के अरमान
जो दिया तूने उसका शुक्रिया भी तुझे
और जो दिए गम उसके गिले भी तुझी से हैं साँवरिया
कहते हैं कुछ के गम का गिला करते नही
पर प्यार अपनों से होता हैं तो
शिकवा भी अपनों से ही होता हैं साँवरिया

तुम से हो जोड़ी, तुम से हो जोड़ी
साची प्रीत हम तुम से हो जोड़ी
तुम से हो जोड़ी, औरन संग तोड़ी

जो तुम दियरा तो ह्म बाती
जो तुम तीर्थ तो ह्म जाती 

जो तुम गिरिवर तो हम मोरा
जो तुम चन्दा तो हम है चकोरा

माधव तुम न तोरो तो हम नाहि तोरे '
तुम संग तोरे तो कौन संग जोरे

जह जह जाऊं वहां तेरी सेवा,
तुम सौ ठाकुर, और ना देवा,

तुम्हरा भजन काटे जम फासा
भग्त हेत गावे "रविदासा"

''जय श्री राधे कृष्णा ''


नैनन में श्याम समाए गयो,

मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ।

लुट जाऊँगी श्याम तेरी लटकन पे,

बिक जाऊँगी लाल तेरी मटकन पे ।

मोरे कैल गरारे भाए गयो,

मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ॥

मर जाऊँगी कान्हा तेरी अधरन पे,

मिट जाऊँगी तेरे नैनन पे ।

वो तो तिरछी नज़र चलाए गयो,

मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ॥

बलिहारी कुंवर

हे कान्हा,
मुझे गुरूर है तेरे साथ का इतना
तूने चाहा मुझे इस हद तक, इसमें क्या गलती मेरी
बता क्या खता मेरी जो बनाया तुझको “महबूब” मैंने अपना
ये आशिकी भी सिखायी है तूने ही मुझे |
निकल गया हूँ तेरे दर को पाने के लिए अपने घर से
क्या मेरा ये यकीन तुझ पर, काबिल ऐ तारीफ़ नहीं
थी औकात मेरी क्या तेरे साथ से पहले
अब ये दिल ऐ गुस्ताख भी करता है हिमाकत ये
कि चुपके से कह देता है “महबूब” तुझको
धीरे से हौले से कह जाना दिल का
एक प्यार से सराबोर जुबान में |
बता किसकी है, खता इसमें, दिल की या तेरी
हां ये दिल भी जुबान बोलता है तेरी ही क्योकि
ये तो तेरा ही हो चुका है ज़माने से
**राधे कृष्णा हरे कृष्णा **
 

संकट हरैगी, करैगी भली वृषभानु की लली.......
तेरे संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली.......
बरसानेवारी तू मेरी सहाय....दीन दुखिन कूं निज दरस करायै
मोकू भी जानो तुम दीन-दुखी......वृषभानु की लली.......
...संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली.......
कृष्ण पियारी सुन मेरी पुकार......जग सौं छुड़ाए मोहे चरनन में डार
तेरे महलन के कोने रहूँ मैं पड़ी........वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली..........
बरसाने धाम जन्म तुम लियौ.....गहवर वन भीतर बिहार कियौ
तिहारी प्यारी लागै मोहे रंगीली गली.......वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली..........
नीलाम्बर पहने हरिदास दुलारी......गल हार हीरन कौ बैंदी भी प्यारी 
तेरी नथली लागै हमें प्यारी बड़ी......वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली..........
त्रिभुवन पति तूने बस में किये...जहाँ पग धरो श्याम तहं नैना धरे
अरी मुक्ति हूँ तेरे चरण में पड़ी.....वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली.......
राधा श्री राधा श्री राधा कहे.....कोटि जग बाधा कूं पल में हरे 
दुष्टन के दल में मचे खलबलि...... वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी, करैगी भली वृषभानु की लली.......
तेरे संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली.......
सर्वेश्वरी लाडली श्री प्यारी जू की जय 
!!! राधे कृष्णा हरे कृष्णा !!!

कान्हा खो गया दिल मेरा तेरे वृन्दावन में 
तेरी मथुरा में तेरे गोकुल में, तेरे सोहणे सोहणे नजरो में 
कान्हा खो गया ......



तेरी यमुना की ये जो धारा है कई पापियों को इसने तारा है 
कैसा जादू भरा इनकी लहरों में,कान्हा खो गया .......

तेरी बंसी की धुन जो बजती है सारी सखियों को प्यारी लगती है 
कैसी मस्ती भरी इसकी तानों में, कान्हा खो गया ....

तेरे दर्शनों से चैन मिलता है फूल मुरझाया दिल का खिलता है 
कैसा आनंद भरा तेरे दर्शन में, कान्हा खो गया ....

तेरे भक्तो को बुलावा आता है मन पंछी बन उड़ जाता है 
कैसा उत्सव भरा तेरे सत्संग में,कान्हा खो गया ....

मतवारी प्यारी चाल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाके लोचन रसाल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाके नीले नीले गाल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाके घुंघरवारे बाल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाके होंठ लाल लाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मैं तो ह्वै गई मालामाल, मेरो यशोदा को लाल ।
प्यारो प्यारो नंदलाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मैं नचाऊँ दै के ताल, मेरो यशोदा को लाल ।
मातु पितु पति लाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मेरो साँचो यार गुपाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मैं तो भई सुहागिनि बाल, मेरो यशोदा को लाल ।
वाने कियो हाल बेहाल, मेरो यशोदा को लाल ।
वो तो बड़ो होत है हाल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाके डर डरे काल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाकी खोटी चाल ढाल, मेरो यशोदा को लाल ।
नाचे गोपीजन ताल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाको विरद दयाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मेरो प्यारो नंदलाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मेरो मदन गोपाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मेरो जीवन गोपाल, मेरो यशोदा को लाल ।
बिनु कारण ‘कृपाल’, मेरो यशोदा को लाल ।

नन्दनँदन सन्तन हितकारी,
कमलनयन प्रभु कुन्जबिहारी।
मुरली मुकुट धरे बृज राजै ,
कोटि काम निरखत छबि लाजै ।
दिन भी भूलूँ रेन भी भूलूँ ,
भूल जाऊँ जग सारा ।
तुम्हेँ न भूलूँ कुंवर कन्हैया ,
चाकर दास तुम्हारा ।।
 

छायो छायो रे लाडली को रंग शोर भयो गलियन में
छायो छायो रे .........
श्री राधा वृषभानु दुलारी राधा कान्हा को है प्यारी
वश कीन्हे याने गिरधारी गिरधारी है गयो दंग
शोर भयो गलियन में ....

ज्ञानी ध्यानी मुनि विज्ञानी ,धर्मी कर्मी मर्म न जानी
यहाँ चढ्यो प्रेम को रंग शोर भयो गलियन में
छायो छायो रे लाडली को रंग

सब सारं को प्रेम सार, है प्रेम पंथ खुद राधा सार है
यही जीवन को है संग शोर भयो गलियन में
छायो छायो रे लाडली को रंग .......

हम चाकर राधा रानी के,हम हो गये ब्रिज की रानी के
यहाँ चढ़े न दूजो रंग शोर भयो गलियन में
छायो छायो रे लाडली को रंग शोर भयो गलियन में
बोलो बरसाने वारी की जय ....

तेरे कितने रूप गोपाल ।

सुमिरन करके कान्हा मैं तो होगया आज निहाल ।

नाग-नथैया, नाच-नचैया, नटवर, नंदगोपाल ।



तेरे कितने रूप गोपाल ।

सुमिरन करके कान्हा मैं तो होगया आज निहाल

नाग-नथैया, नाच-नचैया, नटवर, नंदगोपाल

मोहन, मधुसूदन, मुरलीधर, मोर-मुकुट, यदुपाल

चीर-हरैया, रास -रचैया, रसानंद, रस पाल

कृष्ण-कन्हैया, कृष्ण-मुरारी, केशव, नृत्यगोपाल

वासुदेव, हृषीकेश, जनार्दन, हरि, गिरिधरगोपाल

जगन्नाथ, श्रीनाथ, द्वारिकानाथ, जगत-प्रतिपाल

देवकीसुत,रणछोड़ जी,गोविन्द,अच्युत,यशुमतिलाल

वर्णन-क्षमता कहाँ 'श्याम की, राधानंद, नंदलाल

माखनचोर, श्याम, योगेश्वर, अब काटो भव जाल

धन अकिंचन का श्री कृष्ण शरणम ममः

लक्ष्य जीवन का श्री कृष्ण शरणम ममः।

दीन दुःखियों का, निर्बल जनों का सदा, दृढ सहारा है श्री कृष्ण शरणम ममः
वैष्णवों का हितैषी, सदन शांति का, प्राण प्यारा है श्री कृष्ण शरणम ममः।

काटने के लिये मोह जंजाल को, तेज तलवार श्री कृष्ण शरणम ममः
नाम ही मंत्र है मंत्र ही नाम है, है महामंत्र श्री कृष्ण शरणम ममः।

ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी प्रेम से, नित्य जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः
शेष सनकादि नारद विषारद सभी , रट लगाते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः।

मंत्र जितने भी दुनिया में विख्यात हैं, मूल सबका है श्री कृष्ण शरणम ममः
पाना चाहो जो सिद्धि अनायास है, वे जपें नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः।

श्याम सुंदर निकुंजों में मिल जायेगें, ढूंढ लायेगा श्री कृष्ण शरणम ममः
दुनिया सपना है अपना न कोई यहाँ , नित्य जपना है श्री कृष्ण शरणम ममः।

सत्य शिव और सुन्दर है सर्वस्व जो, वो है नवनीत श्री कृष्ण शरणम ममः

धन अकिंचन का श्री कृष्ण शरणम ममः। लक्ष्य जीवन का श्री कृष्ण शरणम ममः।

"जय जय श्री राधे"

ब्रज की भूमि भई है निहाल |

सुर गन्धर्व अप्सरा गावें नाचें दे दे ताल |

जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |

पुरजन परिजन हर्ष मनावें जनम लियो नंदलाल |

आशिष देंय विष्णु शिव् ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |

बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा नाचहिं ब्रज के बाल |

गोप गोपिका करें आरती, झूमि बजावैं थाल |

आनंद-कन्द प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज-ग्वाल |

सुर दुर्लभ छवि निरखे लखि-छकि श्याम’ हू भये निहाल ||

मेरा दिल दीवाना हो गया वृंदावन की गलियों में ,
वृंदावन की गलियों में ,बरसाने की गलियों में ,
जो होना था सो हो गया ,वृंदावन की गलियों में

सावन की मस्त हवाएं ,यहाँ रिमझिम पड़े फुहारें ,
मन बंशी की धुन में खो गया ,वृंदावन की गलियों में 

मेरे मोहन मुरली वाले .मुझे तुझ बिन कौन सँभाले
मेरा चित्त चुराकर वो गया , वृंदावन की गलियों में

राधे का ध्यान लगाया ,मेरा बांके बिहारी आया ,
राधे संग दर्शन हो गया ,वृंदावन की गलियों में

''जय श्री राधे कृष्णा ''