Tuesday, 27 May 2014



हे गोविन्द मिलती मैं तुझसे पर तेरा पता मालूम नहीं 
कुछ कहती अपनी और सुनती पर तेरा पता मालूम नहीं 

बैचैन है रोते रहते है आँखों में फिर भी अश्क नहीं 
है शिकवे और गिले कितने होठो पर फिर भी लफ्ज़ नहीं 
तेरे सामने बैठके मैं रोती पर तेरा पता मालूम नहीं
हे गोविन्द ....

सब सगे संबंधी है यूँ तो पर इनमे कोई रस ही नहीं
कहने को कण कण में तुम हो पर मिलती तेरी खबर भी नहीं
हसरत तो तेरे दीदार की है पर तेरा पता मालूम नहीं
हे गोविन्द .....

कई जतन हरि कर देख लिए आशा की कली नहीं खिलती
अँधियारा ही अँधियारा है दिल में कोई जोत नहीं जलती
सब छोड़ शरण त्रि आ जाती पर तेरा पता मालूम नहीं
हे गोविन्द .......

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