Tuesday, 27 May 2014


ब्रज की भूमि भई है निहाल |

सुर गन्धर्व अप्सरा गावें नाचें दे दे ताल |

जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |

पुरजन परिजन हर्ष मनावें जनम लियो नंदलाल |

आशिष देंय विष्णु शिव् ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |

बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा नाचहिं ब्रज के बाल |

गोप गोपिका करें आरती, झूमि बजावैं थाल |

आनंद-कन्द प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज-ग्वाल |

सुर दुर्लभ छवि निरखे लखि-छकि श्याम’ हू भये निहाल ||

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