Wednesday, 24 December 2014



करारविन्देन पदार्विन्दं, मुखार्विन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव।
जिव्हे पिबस्वा मृतमेव देव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

विक्रेतुकामाखिल गोपकन्या, मुरारि  पादार्पित चित्तवृतिः।
दध्यादिकं मोहावशादवोचद्, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

गृहे-गृहे गोपवधू कदम्बा:, सर्वे मिलित्वा समवाप्ययोगम्।
पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

सुखं शयाना निलये निजेऽपि, नामानि विष्णोः प्रवदन्तिमर्त्याः।
ते निश्चितं तन्मयतमां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

जिह्‍वे दैवं भज सुन्दराणि, नामानि कृष्णस्य मनोहराणि।
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

सुखावसाने इदमेव सारं, दुःखावसाने इदमेव ज्ञेयम्।
देहावसाने इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

जिह्‍वे रसज्ञे मधुरप्रिया त्वं, सत्यं हितं त्वां परमं वदामि।
आवर्णये त्वं मधुराक्षराणि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

त्वामेव याचे मन देहि जिह्‍वे, समागते दण्डधरे कृतान्ते।
वक्तव्यमेवं मधुरम सुभक्तया, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश, गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो।
जिह्‍वे पिबस्वा मृतमेवदेवं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
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श्रीजी कृपा-कटाक्ष सों मिल गए रास-बिहारी !
जग सूनो-सूनो लागिहै श्यामसुन्दर गिरधारी !!
मुरली मधुर कूँ पाइके और श्रवण कूँ काय ! 
श्रीराधे-राधे रस सुधा मनमोहन रहे बर्षाय !!
अंग-अंग पै लाजि हैं कोटि-कोटि शत काम !
श्री राधावल्लभ दर्शन श्रीजी श्याम के नाम !!
यमुना जल की तरंग में श्री राधे-राधे होय !
रूप माधुरी श्याम की दर्शन नित्य ही होय !!
वृन्दावन ऐसो फलो आनंद चहुँ दिशि आय !
श्रीराधे-राधे मधुर ध्वनि गीत श्याम के गाय !!
नित्य रास सत्संग के निर्झर बिपिन-बिहार !
श्रीजी की कृपा मिले वृन्दावन रस साकार !!
शीतल-मंद-सुगंध-समीर श्री प्रियालाल की कुञ्ज !
हरिदासी-हरिवंश की श्री श्यामा-श्याम उमंग !!
व्यासदास निश्चिन्त हैं श्री प्रियालाल के आस !
भाग्य बड़े "राधे " भये करे श्री वृन्दावन वास !!
श्याम रंग मेरे मन भरे श्री श्यामा रंग में चाम !
गौर-नीलमणि संग सों हरित-ललित द्युति नाम !!
सत्संगहि पाई परम दुर्लभ राशि महान ! 
सफल भये जीवन मेरे श्री वृन्दावन की छाँव !!
भेंट भई नन्दलाल सों प्रगटे मन मेरे आय !
श्री राधे-राधे गात हूँ श्री राधे-राधे ध्याय !!



तुमसे तन-मन मिले प्राण प्रिय! सदा सुहागिन रात हो गई होंठ हिले तक नहीं लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई राधा कुंज भवन में जैसे सीता खड़ी हुई उपवन में खड़ी हुई थी सदियों से मैं थाल सजाकर मन-आंगन में जाने कितनी सुबहें आईं, शाम हुई फिर रात हो गई होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई तड़प रही थी मन की मीरा महा मिलन के जल की प्यासी प्रीतम तुम ही मेरे काबा मेरी मथुरा, मेरी काशी छुआ तुम्हारा हाथ, हथेली कल्प वृक्ष का पात हो गई होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई रोम-रोम में होंठ तुम्हारे टांक गए अनबूझ कहानी तू मेरे गोकुल का कान्हा मैं हूं तेरी राधा रानी देह हुई वृंदावन, मन में सपनों की बरसात हो गई होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई सोने जैसे दिवस हो गए लगती हैं चांदी-सी रातें सपने सूरज जैसे चमके चन्दन वन-सी महकी रातें मरना अब आसान, ज़िन्दगी प्यारी-सी सौगात ही गई होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई


- : राधिका :-
न जाना छोड़के कान्हा तू मेरे मन
का वृन्दावन,
तेरे जाने की बातों से मेरे नयनों में है
सावन।
अग़र जाना ही था तो फिर बसे क्यूँ मन के
आँगन में,
बहुत देगा तुम्हें गारी ये जमना तीर
का उपवन।

- : कृष्ण :-
करेंगें हर घड़ी हर पल प्रतिक्षा हम
तेरी राधे,
बहुत सूना है ये मधुवन, निशा पूनम की ये
राधे।
हमारा रास क्या, मधुमास क्या, विश्वास
हो तुम ही,
मुरलिया भूल बैठी है मधुर सरगम
मेरी राधे।


तेरी बांकी नजर का असर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया
प्रेम मंदिर पुजारन का घर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया

सुध नहीं अब कोई , ना कोई साज है
गीत भी अब तू ही तू ही आवाज है
तू ही श्रृंगार तू ही संवर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया

प्रेम धुन बांसुरी जब बजाये कहीं
रास के भाव मन में जगाए कहीं
नृत्य ही नृत्य शाम-ओ -शहर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया

मन में तेरी रटन बस तू ही है भजन
कर्म भी अब तू ही धर्म तेरे वचन
दुनिया दारी से मै बेखबर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया

प्रेम स्वीकार कर भव से अब पार कर
मन में एक तू बसा मुझसे ही प्यार कर
मोह संसार का बेअसर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया

तू अगर है खुदा तो मै तुझसे जुड़ा
राह पर मै तेरी हर कदम पर पड़ा
तेरे हर अक्स का मुख़्तसर हो गया
मेरा कान्हा नजर हम नजर हो गया ....

Thursday, 18 December 2014



मधुराष्टकं की रचना भगवान श्री कृष्ण जी के परम भक्त श्री वल्लभाचार्य जी ने की थी।मधुराष्टकं अत्यन्त सुंदर स्तोत्र है। जिसमें मधुरापति श्री कृष्ण जी के परम सुंदर रूप और भावों का वर्णन है।श्री कृष्ण साक्षात् माधुर्य और मधुरापति हैं।

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ஜ۩۞۩ஜअधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम्ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜहृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜउनके अधर मधुर है।मुख मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜनेत्र मधुर है।हास्य मधुर है।ஜ۩۞۩ஜஜ۩۞۩ஜह्रदय मधुर है।और गति भी अति मधुर है ।।१।।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜवचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜचलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜवस्त्र मधुर है।अंगभगी मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜचाल मधुर है।और भ्रमण भी अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है ।।२।।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜवेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜनृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜउनका वेणु मधुर है।चरणरज मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜकरकमल मधुर है।चरण मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜन्रत्य मधुर है।और सख्य भी अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।।३।।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜगीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜरूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜउनका गान मधुर है।पान मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜभोजन मधुर है।शयन मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜऔर तिलक भी अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜकरणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम्ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜवमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜउनका कार्य तैरना मधुर है।हरण मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜरमण मधुर है।उद्धार मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜऔर शान्ति भी अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜगुञ्जा मधुरा बाला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुराஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜसलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜउनकी गुंजा मधुर है।माला मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜयमुना मधुर है।तरंग मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜउनका जल मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜऔर उनका कमल अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।।६ ।।ஜ۩۞۩ஜ

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ஜ۩۞۩ஜगोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜदृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜगोपिया मधुर है लीला मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
उनका संयोग मधुर है।शिष्टाचार भी मधुर है।
श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है।। ७।।

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ஜ۩۞۩ஜगोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुराஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜदलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ஜ۩۞۩ஜ

ஜ۩۞۩ஜगोप मधुर है।गौऐ मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜलकुटी मधुर है।रचना मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜदलन मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜऔर उनका फल भी अति मधुर है।ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜश्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है ஜ۩۞۩ஜ


सारे बंधन तोड़ के कान्हा,
तुमसे लगाई आस.
कहना मान लो मनमोहन,
ज़रा सुन लो अरदास।
जग कहे है मनमोहन तुम्हे,
तुम हो मेरे नंदलाल।
अंगुली पर गोवर्धन उठा,
कहलाये गोपाल।
इंद्र की मनमानी का बहुत,
हो गया यहां उपहास,,,,,,,
कहना मान ................
तुम्हारी मन मोहनी मूरत,
तुम्हारे शोभते से अंग.
गीत गायें करे गोपियाँ मनुहार,
संग करे गोपाल सत्संग।
न दूर तुम जाओ मोहन,
रहो तुम हमारे पास,,,,,,
कहना मान ………
हाथों में तुम्हारे वेणु सजे ,
गले में वैजयंती माल.
तुम्हारे पाँव लगे रेणु,
कस्तूरी तिलक है भाल.
सदा मैं नाम लूँ तुम्हारा,
हो पास ये आभास,,,,,,,,
कहना मान ……
तुम्हारे प्यार की इक बूँद,
खिलाये मन हरियल दूब.
खिल गयीं ओस में कलियाँ,
भागी जीवन की कड़वी ऊब.
जब तुम पास हो मेरे,
तो क्यों हो मन उदास ,,,,,,,,,,,,


श्याम वरण काया, निर्मल है तन- मन,
अद्भुत तेरा शैशव, नटखट है बालपन...
..
देवकी के पुत्र किशन, जन्म कालकोठरी में 
यशोदा का लाडला , करे लाड़ गोकुल में ....

पूतना का वध हो या कालिया का मर्दन,
माखन चुराए या उठाये गोवर्धन .....

मां के दुलार में सराबोर हुआ बचपन,
राजकुंवर ग्वालो से जताए अपनापन ...
..
पुत्र की लीला से ,पुलकित है अंग अंग ,
हर मैया पूछे ! माखनचोर तेरे कितने रंग

जिन गोपियों के बीच कान्हा रास रचाए,
वही गोपियाँ ,उद्धव को भक्ति पाठ पढाये.....
.
सोलह हजार रानियां मंडराए चहुँओर,
राधा के पावन प्रेम का पुजारी ! चितचोर.....

इतनी नारियो के बीच सभी भोगी कहलायें
रंगरसिया श्याम, फिर भी योगी कहलाये .....

प्रेम भी उद्यत है ,जब हो भक्ति के संग,
चकित है मीरा !मनमोहना तेरे कितने रंग 

Wednesday, 17 December 2014



मेरे माधव !
यूँ मुझमे समाये हो तुम 
की होश नहीं ,
मैं तुम हूँ की तुम मैं 
रागिनी हूँ मैं पिया तुम्हारी 
धर लो न अधरों पे मुझे रागिनी हूँ 
रंग में रंग के देख तो लो मन बसिया
तुम जेसा सच्चा कोई नहीं
तुम जिसा निष्पाप कोई नहीं
दुनिया कहे तुम्हे कहे छलिया
कौन जाने इसके पीछे
कितनी अबलाओं को तुमने अपना नाम दिया ....
सम्हाला दुनिया को जीवन का सांचा मार्ग दिया
जो किया कभी छिपा के नहीं
दुनिया के सामने किया
इसलिए तो तुम कहलाओ पगले छलियाँ
तुम छलिया नहीं सांचे मानव हो
जिसने सबको अपना नाम दिया
जिसने जिस रूप में तुम्हे पुकारा
तुमने उसे थाम लिया ..
मुझे भी यूँ ही थामे रहियो मेरे सर्वेश्वर
मेरे राम .!
तुम्हारी चरण दासी 


मोहे गोकुल ऐसो भायो सखी ,मैं तो भूल गई बरसानो री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री 

कहें गोपियाँ माखनचोरी करे वो नंदकिशोर री 
धर के हथेली दिल दे आई ,कैसे कहूँ चित्तचोर री
चलो ना कोई जोर री , मैं किसने देऊ उल्हानो री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री

ऐसी भई मैं श्याम की श्यामा , मैं तो हुई बडभागन री
जागत जागत खोवन लगी मैं ,सोवत सोवत जागन री
अब श्याम रहे मेरी आंखन मैं, जग दिखे बेगानों री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री

सबई कहें ठगन को ठग है ,जो है नन्द को लालो
मैं का मानू बात सखी वो मेरे है देखो- भालो
देखन मैं बेशक है कालो , वो सबने करे दीवानों री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री

Tuesday, 16 December 2014



 भक्तवत्सल हरि बिरुद तिहारो
भज गोविंद तु, हरि सुखदाई,
नाथ चरण तुम शरण मे आई;
जूठे जगत से मोहे बचाई। भज गोविंद..
इस संसार के जूठे संबंधी,
स्वाराथ में सब दुनिया अंधी;
मोहन तुम मोहे उर लगाई। भज गोविंद..
प्रभु के साथ मोरी प्रीत अभंगी,
होवत हरि में तोरी सत्संगी। 
हरि स्मरण में प्रीत लगाई। भज गोविंद..
अशरण के तुम शरण कहाई,
रखो लाज प्रभु हमरी कन्हाई;
कर जोड़ी करू वंदना सदाई। भज गोविंद..


अब तो हरि नाम लौ लागी
सब जग को यह माखनचोर, नाम धर्यो बैरागी।
कहं छोडी वह मोहन मुरली, कहं छोडि सब गोपी।
मूंड मुंडाई डोरी कहं बांधी, माथे मोहन टोपी।
मातु जसुमति माखन कारन, बांध्यो जाको पांव।
स्याम किशोर भये नव गोरा, चैतन्य तांको नांव।
पीताम्बर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
दास भक्त की दासी मीरा, रसना कृष्ण रटे॥

Sunday, 1 June 2014



काजल भगवत प्रेम का ,
 नयनो मे लूं डार कंठ मे भक्ति की माला हो , 
प्रभु सुमिरन का हार भक्त कदम वहाँ पर पड़े ,
 जहाँ प्रभु का द्वार
नयनों को बस आस रही ,
 हरि दर्शन की आस प्यास लगे जब कंठ को ,
 प्रभु जल की हो प्यास
हाथों मे जब भी मिले , 
प्रभु चरणों के फूल हाथ करे चरणों की सेवा , 
माथे चरणन धूल
कानों मे जब भी पड़े ,
 हो सत्संग का सार ।
प्रीत करूँ प्रभु की भक्ति से , 
ये है सच्चा प्यार

अधरों पर हर पल धरूं, 
प्रभु सुमिरन के बोल ।
जिहवा को पल पल मिले ,
 हरि अमृत का धोल
''जय श्री राधे कृष्णा '


जबते मोहि नन्दनंदन दृष्टि परो माई ।
तबसे परलोक लोक कछु न सुहाई ।
कहा कहूँ अनूप छबि बरनी नहीं जाई ।।
मोरन की चन्द्रकला सीस मुकुट सोहे ।
केसर रो तिलक भाल तीन लोक मोहे ।।
कुंडल की अलक झलक कपोलन पर छाई ।
मानो मीन सरवर तजि मकर मिलन आई ।।
ललित भृकुटि तिलक भाल चितवन में टोना ।
खंजन अरु मधुर मीन भूले मृग छोना ।।
सुंदर अपि नासिका सुग्रीव तीन रेखा ।
नटवर प्रभु वेश धरे रूप विशेषा ।।
हसन दशन दाड़िम दुति मंद मंद हाँसी ।
दामिन दुति चमकी जे चपला सी ।।
चन्द्र घंटिका अनुपम बरनी नहीं जाई ।
गिरिधर प्रभु चरनकमल मीरा बलि बलि जाई ।।
**** राधे कृष्णा हरे कृष्णा ****

हे कान्हा,
मुझे गुरूर है तेरे साथ का इतना
तूने चाहा मुझे इस हद तक, इसमें क्या गलती मेरी
बता क्या खता मेरी जो बनाया तुझको “महबूब” मैंने अपना
ये आशिकी भी सिखायी है तूने ही मुझे |
निकल गया हूँ तेरे दर को पाने के लिए अपने घर से
क्या मेरा ये यकीन तुझ पर, काबिल ऐ तारीफ़ नहीं
थी औकात मेरी क्या तेरे साथ से पहले
अब ये दिल ऐ गुस्ताख भी करता है हिमाकत ये
कि चुपके से कह देता है “महबूब” तुझको
धीरे से हौले से कह जाना दिल का
एक प्यार से सराबोर जुबान में |
बता किसकी है, खता इसमें, दिल की या तेरी
हां ये दिल भी जुबान बोलता है तेरी ही क्योकि
ये तो तेरा ही हो चुका है ज़माने से




घूंघट के पट ना खोले रे |
राधा, ना बोले, ना बोले, ना बोले रे |

राधा की लाज भरी अखियों के डोरे
देखोगे कैसे अब गोकुळ के छोरे 
देखो मोहन का मनवा डोले रे

याद करो जमुना किनारें, सावरीयां
फोडी थी राधा की काहे गगरीयां
इस कारण ना तुम संग बोले रे

रूठी हुई, यूँ ना मानेगी छलिया
चरणों में राधा के रख दो मुरलियाँ
बात बन जायेगी होले होले
!! राधे कृष्णा !!


गुरु को करिये वन्दना,
भाव से बारम्बार,
नाम सुनौका से किया,
जिसने भव से पार 

रहते हैं जलवे आपके नजरों में हर घड़ी,
मस्ती का जाम आपने ऐसा पिला दिया,
ऐसा पिला दिया ॥

जिस दिन से मुझको आपने अपना बना लिया,
दोनो जहाँ को हे प्रभु तब से भुला दिया,
तब से भुला दिया ॥

जिस ने किसी को आजतक सजदा नहीं किया,
वो सिर भी मैने आपके दर पे झुका दिया,
दर पे झुका दिया ॥

Tuesday, 27 May 2014



हे गोविन्द मिलती मैं तुझसे पर तेरा पता मालूम नहीं 
कुछ कहती अपनी और सुनती पर तेरा पता मालूम नहीं 

बैचैन है रोते रहते है आँखों में फिर भी अश्क नहीं 
है शिकवे और गिले कितने होठो पर फिर भी लफ्ज़ नहीं 
तेरे सामने बैठके मैं रोती पर तेरा पता मालूम नहीं
हे गोविन्द ....

सब सगे संबंधी है यूँ तो पर इनमे कोई रस ही नहीं
कहने को कण कण में तुम हो पर मिलती तेरी खबर भी नहीं
हसरत तो तेरे दीदार की है पर तेरा पता मालूम नहीं
हे गोविन्द .....

कई जतन हरि कर देख लिए आशा की कली नहीं खिलती
अँधियारा ही अँधियारा है दिल में कोई जोत नहीं जलती
सब छोड़ शरण त्रि आ जाती पर तेरा पता मालूम नहीं
हे गोविन्द .......




जग के सारे बंधन छूटें
बस तुमसे ही काम रहे
अंत समय आए तो कान्हा
मुख पे तेरा नाम रहे
राधे राधे राधे राधे .....

छुपा रहूं जग के आगे
भींगू कृपा बरसात में
देखूं तुमको कण कण में
बोलूं तुझको हर बात में
भेजोगे जो फिर धरती पे, गोकुल मेरा गांव रहे
अंत समय आए तो कान्हा, मुख पे तेरा नाम रहे
राधे राधे राधे राधे .....

मेरी सुबह शुरू तेरे नाम से
और शाम भी तेरे नाम पे
नाचे मन मेरा मयूर
मोहन मुरली की तान पे
सपनों में मुझे दर्शन देना, नख गोबर्धन धाम रहे
अंत समय आए तो कान्हा, मुख पे तेरा नाम रहे
राधे राधे राधे राधे .....

मैं झुका के सर को चरणों में
अंसुवन से पांव पखारूँगा
मन के मंदिर में बिठा तुम्हें
जीवन भर नित्य निहारूँगा
दिन बीते मेरा वृन्दावन में, बरसाने की शाम रहे
अंत समय आए तो कान्हा, मुख पे तेरा नाम रहे
राधे राधे राधे राधे .....

आना होगा तुमको एक दिन
पागल मन की कलियों में
मेरा रोम रोम है नाच रहा
कान्हा गोकुल की गलियों में
जब भी मोहन दर्शन देना, राधा रुक्मण साथ रहे
अंत समय आए तो कान्हा, मुख पे तेरा नाम रहे
राधे राधे राधे राधे .....

है आनन्द कथा में जब
द्वापर जाने कैसा होगा
तेरे नाम में रस इतना है भरा
तू स्वयं मधुर कितना होगा
स्वाद चखा दे निज भक्ति का, सफल मेरी अरदास रहे
अंत समय आए तो कान्हा, मुख पे तेरा नाम रहे


ओ मेरे साँवरिया हर पल तू रहे
मेरे सामने देखू तुझे जी भर के
तुझसे ही गिले शिकवे साँवरिया
तुझी से ही हैं प्यार मेरे साँवरिया
तू ही मेरी आत्मा,तू ही दिल और जान
तुझ से ही हैं कायनात सारी
तुझ से ही हैं दिल के अरमान
जो दिया तूने उसका शुक्रिया भी तुझे
और जो दिए गम उसके गिले भी तुझी से हैं साँवरिया
कहते हैं कुछ के गम का गिला करते नही
पर प्यार अपनों से होता हैं तो
शिकवा भी अपनों से ही होता हैं साँवरिया

तुम से हो जोड़ी, तुम से हो जोड़ी
साची प्रीत हम तुम से हो जोड़ी
तुम से हो जोड़ी, औरन संग तोड़ी

जो तुम दियरा तो ह्म बाती
जो तुम तीर्थ तो ह्म जाती 

जो तुम गिरिवर तो हम मोरा
जो तुम चन्दा तो हम है चकोरा

माधव तुम न तोरो तो हम नाहि तोरे '
तुम संग तोरे तो कौन संग जोरे

जह जह जाऊं वहां तेरी सेवा,
तुम सौ ठाकुर, और ना देवा,

तुम्हरा भजन काटे जम फासा
भग्त हेत गावे "रविदासा"

''जय श्री राधे कृष्णा ''


नैनन में श्याम समाए गयो,

मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ।

लुट जाऊँगी श्याम तेरी लटकन पे,

बिक जाऊँगी लाल तेरी मटकन पे ।

मोरे कैल गरारे भाए गयो,

मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ॥

मर जाऊँगी कान्हा तेरी अधरन पे,

मिट जाऊँगी तेरे नैनन पे ।

वो तो तिरछी नज़र चलाए गयो,

मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ॥

बलिहारी कुंवर

हे कान्हा,
मुझे गुरूर है तेरे साथ का इतना
तूने चाहा मुझे इस हद तक, इसमें क्या गलती मेरी
बता क्या खता मेरी जो बनाया तुझको “महबूब” मैंने अपना
ये आशिकी भी सिखायी है तूने ही मुझे |
निकल गया हूँ तेरे दर को पाने के लिए अपने घर से
क्या मेरा ये यकीन तुझ पर, काबिल ऐ तारीफ़ नहीं
थी औकात मेरी क्या तेरे साथ से पहले
अब ये दिल ऐ गुस्ताख भी करता है हिमाकत ये
कि चुपके से कह देता है “महबूब” तुझको
धीरे से हौले से कह जाना दिल का
एक प्यार से सराबोर जुबान में |
बता किसकी है, खता इसमें, दिल की या तेरी
हां ये दिल भी जुबान बोलता है तेरी ही क्योकि
ये तो तेरा ही हो चुका है ज़माने से
**राधे कृष्णा हरे कृष्णा **
 

संकट हरैगी, करैगी भली वृषभानु की लली.......
तेरे संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली.......
बरसानेवारी तू मेरी सहाय....दीन दुखिन कूं निज दरस करायै
मोकू भी जानो तुम दीन-दुखी......वृषभानु की लली.......
...संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली.......
कृष्ण पियारी सुन मेरी पुकार......जग सौं छुड़ाए मोहे चरनन में डार
तेरे महलन के कोने रहूँ मैं पड़ी........वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली..........
बरसाने धाम जन्म तुम लियौ.....गहवर वन भीतर बिहार कियौ
तिहारी प्यारी लागै मोहे रंगीली गली.......वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली..........
नीलाम्बर पहने हरिदास दुलारी......गल हार हीरन कौ बैंदी भी प्यारी 
तेरी नथली लागै हमें प्यारी बड़ी......वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली..........
त्रिभुवन पति तूने बस में किये...जहाँ पग धरो श्याम तहं नैना धरे
अरी मुक्ति हूँ तेरे चरण में पड़ी.....वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली.......
राधा श्री राधा श्री राधा कहे.....कोटि जग बाधा कूं पल में हरे 
दुष्टन के दल में मचे खलबलि...... वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली.......
संकट हरैगी, करैगी भली वृषभानु की लली.......
तेरे संकट हरैगी करैगी भली वृषभानु की लली.......
सर्वेश्वरी लाडली श्री प्यारी जू की जय 
!!! राधे कृष्णा हरे कृष्णा !!!

कान्हा खो गया दिल मेरा तेरे वृन्दावन में 
तेरी मथुरा में तेरे गोकुल में, तेरे सोहणे सोहणे नजरो में 
कान्हा खो गया ......



तेरी यमुना की ये जो धारा है कई पापियों को इसने तारा है 
कैसा जादू भरा इनकी लहरों में,कान्हा खो गया .......

तेरी बंसी की धुन जो बजती है सारी सखियों को प्यारी लगती है 
कैसी मस्ती भरी इसकी तानों में, कान्हा खो गया ....

तेरे दर्शनों से चैन मिलता है फूल मुरझाया दिल का खिलता है 
कैसा आनंद भरा तेरे दर्शन में, कान्हा खो गया ....

तेरे भक्तो को बुलावा आता है मन पंछी बन उड़ जाता है 
कैसा उत्सव भरा तेरे सत्संग में,कान्हा खो गया ....

मतवारी प्यारी चाल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाके लोचन रसाल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाके नीले नीले गाल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाके घुंघरवारे बाल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाके होंठ लाल लाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मैं तो ह्वै गई मालामाल, मेरो यशोदा को लाल ।
प्यारो प्यारो नंदलाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मैं नचाऊँ दै के ताल, मेरो यशोदा को लाल ।
मातु पितु पति लाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मेरो साँचो यार गुपाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मैं तो भई सुहागिनि बाल, मेरो यशोदा को लाल ।
वाने कियो हाल बेहाल, मेरो यशोदा को लाल ।
वो तो बड़ो होत है हाल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाके डर डरे काल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाकी खोटी चाल ढाल, मेरो यशोदा को लाल ।
नाचे गोपीजन ताल, मेरो यशोदा को लाल ।
जाको विरद दयाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मेरो प्यारो नंदलाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मेरो मदन गोपाल, मेरो यशोदा को लाल ।
मेरो जीवन गोपाल, मेरो यशोदा को लाल ।
बिनु कारण ‘कृपाल’, मेरो यशोदा को लाल ।

नन्दनँदन सन्तन हितकारी,
कमलनयन प्रभु कुन्जबिहारी।
मुरली मुकुट धरे बृज राजै ,
कोटि काम निरखत छबि लाजै ।
दिन भी भूलूँ रेन भी भूलूँ ,
भूल जाऊँ जग सारा ।
तुम्हेँ न भूलूँ कुंवर कन्हैया ,
चाकर दास तुम्हारा ।।
 

छायो छायो रे लाडली को रंग शोर भयो गलियन में
छायो छायो रे .........
श्री राधा वृषभानु दुलारी राधा कान्हा को है प्यारी
वश कीन्हे याने गिरधारी गिरधारी है गयो दंग
शोर भयो गलियन में ....

ज्ञानी ध्यानी मुनि विज्ञानी ,धर्मी कर्मी मर्म न जानी
यहाँ चढ्यो प्रेम को रंग शोर भयो गलियन में
छायो छायो रे लाडली को रंग

सब सारं को प्रेम सार, है प्रेम पंथ खुद राधा सार है
यही जीवन को है संग शोर भयो गलियन में
छायो छायो रे लाडली को रंग .......

हम चाकर राधा रानी के,हम हो गये ब्रिज की रानी के
यहाँ चढ़े न दूजो रंग शोर भयो गलियन में
छायो छायो रे लाडली को रंग शोर भयो गलियन में
बोलो बरसाने वारी की जय ....

तेरे कितने रूप गोपाल ।

सुमिरन करके कान्हा मैं तो होगया आज निहाल ।

नाग-नथैया, नाच-नचैया, नटवर, नंदगोपाल ।



तेरे कितने रूप गोपाल ।

सुमिरन करके कान्हा मैं तो होगया आज निहाल

नाग-नथैया, नाच-नचैया, नटवर, नंदगोपाल

मोहन, मधुसूदन, मुरलीधर, मोर-मुकुट, यदुपाल

चीर-हरैया, रास -रचैया, रसानंद, रस पाल

कृष्ण-कन्हैया, कृष्ण-मुरारी, केशव, नृत्यगोपाल

वासुदेव, हृषीकेश, जनार्दन, हरि, गिरिधरगोपाल

जगन्नाथ, श्रीनाथ, द्वारिकानाथ, जगत-प्रतिपाल

देवकीसुत,रणछोड़ जी,गोविन्द,अच्युत,यशुमतिलाल

वर्णन-क्षमता कहाँ 'श्याम की, राधानंद, नंदलाल

माखनचोर, श्याम, योगेश्वर, अब काटो भव जाल

धन अकिंचन का श्री कृष्ण शरणम ममः

लक्ष्य जीवन का श्री कृष्ण शरणम ममः।

दीन दुःखियों का, निर्बल जनों का सदा, दृढ सहारा है श्री कृष्ण शरणम ममः
वैष्णवों का हितैषी, सदन शांति का, प्राण प्यारा है श्री कृष्ण शरणम ममः।

काटने के लिये मोह जंजाल को, तेज तलवार श्री कृष्ण शरणम ममः
नाम ही मंत्र है मंत्र ही नाम है, है महामंत्र श्री कृष्ण शरणम ममः।

ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी प्रेम से, नित्य जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः
शेष सनकादि नारद विषारद सभी , रट लगाते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः।

मंत्र जितने भी दुनिया में विख्यात हैं, मूल सबका है श्री कृष्ण शरणम ममः
पाना चाहो जो सिद्धि अनायास है, वे जपें नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः।

श्याम सुंदर निकुंजों में मिल जायेगें, ढूंढ लायेगा श्री कृष्ण शरणम ममः
दुनिया सपना है अपना न कोई यहाँ , नित्य जपना है श्री कृष्ण शरणम ममः।

सत्य शिव और सुन्दर है सर्वस्व जो, वो है नवनीत श्री कृष्ण शरणम ममः

धन अकिंचन का श्री कृष्ण शरणम ममः। लक्ष्य जीवन का श्री कृष्ण शरणम ममः।

"जय जय श्री राधे"

ब्रज की भूमि भई है निहाल |

सुर गन्धर्व अप्सरा गावें नाचें दे दे ताल |

जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |

पुरजन परिजन हर्ष मनावें जनम लियो नंदलाल |

आशिष देंय विष्णु शिव् ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |

बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा नाचहिं ब्रज के बाल |

गोप गोपिका करें आरती, झूमि बजावैं थाल |

आनंद-कन्द प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज-ग्वाल |

सुर दुर्लभ छवि निरखे लखि-छकि श्याम’ हू भये निहाल ||

मेरा दिल दीवाना हो गया वृंदावन की गलियों में ,
वृंदावन की गलियों में ,बरसाने की गलियों में ,
जो होना था सो हो गया ,वृंदावन की गलियों में

सावन की मस्त हवाएं ,यहाँ रिमझिम पड़े फुहारें ,
मन बंशी की धुन में खो गया ,वृंदावन की गलियों में 

मेरे मोहन मुरली वाले .मुझे तुझ बिन कौन सँभाले
मेरा चित्त चुराकर वो गया , वृंदावन की गलियों में

राधे का ध्यान लगाया ,मेरा बांके बिहारी आया ,
राधे संग दर्शन हो गया ,वृंदावन की गलियों में

''जय श्री राधे कृष्णा ''

Thursday, 20 March 2014



साँवरी सूरत पे मेरा दिल दीवाना हो गया
मोहनी मूरत पे मेरा दिल दीवाना हो गया
एक तेरे नयन मोटे
दुसरे कजरा पड़ा
तीसरे तेरी तिरछी नज़र पे दिल दीवाना हो गया
एक तेरे होंठ रसीले
दुसरे बंसी सजी
तीसरे तेरा मुस्कुराना दिल दीवाना हो गया
एक तेरे बाल काले
दूसरे घुंगरा वाले
तीसरे तेरे मोर मुकुट पे दिल दीवाना हो गया
एक तेरा रंग सांवला
दुसरे राधा गोरी गोरी
तीसरी तेरी युगल छवि पे दिल♥ दीवाना हो गया
साँवरी सूरत पे मेरा दिल दीवाना हो गया
मोहनी मूरत दिल दीवाना हो गया..